मेरा पन्ना…

अम्मा मैं तो सठिया गया हूँ…

बढ़ती उम्र का तकाज़ा है, मैं सठिया गया हूँ;
बुरे वक्त का नतीज़ा है, मैं बौरा रहा हूँ;

याद आती हैं वो तंग गलियाँ, तेरे ठिकाने की;
सुरभि फैलाती थी जब कलियाँ, तेरे अफ़साने की;

मिट गये हैं निशाँ वो, तेरे यादगार यारों के;
ढूंढता है जिन्हे तू, समय के गलियारों में;

Mukesh Saxena

शमा जलती है तनहा, बिन हम परवानों के;
खाक सजेगी महफिल, बिन हम दीवानों के;

मुहब्बत हो गयी है फ़ना, दिल के गुलिस्ताँनों से;
दी गयी है दफ़ना, खयाली क़ब्रिस्तानों में ;

चलो अच्छा हुआ, मैं बौरा रहा हूँ ;
ढलती उम्र शुक्रिया, मैं सठिया गया हूँ!

Mukesh Saxena

अलविदा…

साकी ने छोड़ा दामन, तऩहाईयां हैं बाकी,

मुहब्बत हमने भी की मगर, बेवफाईयां हैं बाकी,

मयख़ाने में अब हुस्न के, जलसे हुये नाकाबिल,

हर जाम है खाली, रुसवाईयां हैं बाकी,

और इश्क तेरे दम पर, कब तक जिऊँगा मै,

बन्द हो रही हैं नज़रे, विदाईयां हैं बाकी!

Engineering Friends

धोका.........

मुझसे मत पूछो, मेरी बेरुखी का सबब;

मुहब्बत उसूलों से होती है, नापाक इरादों से नहीं;

ये मेरे  दिल से, धुआं सा क्या उठ रहा है;

आग दिलों में लगती है, ग़लीज़ वादों में नहीं;

बेरहम रात ढलती रही, बेमुरव्वत, बेअदब;

छल उजालों से डरता है, आबनूसी सन्नाटों से नहीं;

ज़िन्दगी तू हर लम्हा, करती रही मुझसे फ़रेब;

खुशबू फूलों से आती है; चुभते काँटों से नही |

Mukesh Saxena
Mukesh Saxena
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2 thoughts on “मेरा पन्ना…”

  1. जब भी मैं इस पन्ने पर आता हूँ, आपके शब्दों में खो जाता हूँ। कृप्या ऐसे और लिखते रहिये।

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