समय की विभीषिका पर अपनों का साथ …
किसी ने खूब कहा है की जब
अपने ही बन गए अपनों के फ़रिश्ते
प्रस्तुत आलेख इस कोरोना महामारी के समय पर मानव के मन की व्यथा एवं परिवार के साथ को उम्मीद का नया रास्ता बताकर उसके मन के कुंठाओ के प्रति एक आशावादी’ दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत किया है |